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आगा जवाद नक़वी की तौहीन क्यूं ?

आगा जवाद नक़वी की तौहीन क्यूं ? 

पिछले जुमा आगा जवाद नक़वी साहब ने खुतबा देते हुए कुछ जुमले अर्ज़ किए हैं जिन पर कुछ हज़रात को एतराज़ है कि इन्होंने मजलिस को गैर शरई करार दिया है। बताते चलें कि इस खिताब को करते हुए आप ने फरमाया था,  _"यूं नहीं कि नमाज जुमा और नमाज तरावीह बराबर है नमाज़ जुमा का तरावीह से कोई बराबरी नहीं है हो सकता है। नमाज ए तरावीह इसी तरह है जिस तरह शिया मजालिस बपा करतें हैं और  बानियान ए मजलिस आम दिनों में दिनों में मजलिस तर्क करने को कहते है, जिस तरह आम दिनों ने मजालिस पर पाबंदी लगाई जाती है या इलाक़े वाले आकर कहते है कि मजलिस ना करो, तो फ़िर इसरार करना भी ऐसा ही है, जैसे तरावीह पर इसरार करना हो, क्यूंकि अगर मजलिस बंद होंगी तो एक तबके को नुक्सान होगा और अगर तरावीह बंद होगी तो दूसरे तबके कि नुकसान होगा!"_

(इसके बाद ये खुतबा पूरा एक घंटा से ज़्यादा चलता है जिसे शायद की किसी है सुना हो!) 

गौरो फ़िक्र करने के साथ साथ तास्सुब की ऐनक भी उतारें, क्यूंकि इस मुद्दे में तास्सुब दिख रहा है । बहरहाल क्योंकि जब तक आपके ज़हन में फितूर रहेगा तो आप हक़ को समझ नहीं पाएंगे, काफी सालों से ये सिलसिला जारी है कि आगा जवाद नक़वी समेत तमाम उलेमा की बातों को काटकर छोटी-छोटी क्लिप्स की शक्ल में मुखालिफीने अहलेबैत, मुखालिफीन ए उलेमा शाया कर रहे हैं जो कि निहायती पचकाना और गैर माकुल अमल है। 2 घंटे के ख़ुतबे  से 2 मिनट का क्लिप निकालकर तौहीन और तज़लील करना निहायत आसान अमल है लेकिन याद रहे कि 2 मिनट क्लिप बनाना फक़त फेसबुक तक महदूद नहीं है बल्कि आपके नामा ए आमाल में भी लिखा जा रहा है।

*आख़िर मसला क्या है?*

सैय्यद जवाद नक़वी साहब कोई मामूली फर्द नहीं है जिनकी लिए हर चलता फिरता अपनी ज़ुबान खोल रहा है, इन्होंने ना तो मजालिस का इनकार ना ही मजालिस के किसी हिस्से की मुखालिफ़त की है, बल्कि मजालिस और इसी तरह तरावीह की वाजिब होने पर बयान दिया है, जिस तरह पांच वक़्त की नमाज़ है? क्या इसी तरफ़ तरावीह और मजालिस भी वाजिब है? क्या कहीं मजलिस का वाजिब होना साबित है? ये तो बच्चा बच्चा जानता है कि मजलिस ना तो वाजिब है ना इसकी क़ज़ा का जवाज़ मौजूद है। बल्कि ये ना रुकने वाली ऐसी तहरीक़ है जिसके ज़रिए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की अज़ीम कुर्बानी को याद किया जाता है और एक किले के मनिंद है जिसके अंदर इस्लाम महफूज़ है। ख़ुद जवाद नक़वी साहब पूरे मुहर्रम ओ सफ़र मजालिस के कम अज़ कम चार अशरे पढ़तें है जिनमे एक मजलिस में कम से कम तीन घंटे का खिताब होता है। इसके अलावा पूरे साल इमामों कि शहादतों पर आपकी तीस से ज़्यादा मजालिस होती है, जिसमें जुलुसे अज़ा वा बहत्तर ताबूत की मजालिस भी मौजूद है। ऐसे में इनपर ये इल्ज़ाम लगाना खुला झूठ और कुफ्र है। 

*क्या आगा जवाद साहब ने मजलिस को तरावीह जैसी बिद्दत के साथ मिलाया है?*

नहीं! ऐसा नहीं है, मसला है लोगों के ज़हनी फितूर का, जिसकी वजह से सय्यद के आम कालिमात लोगों के समझ नहीं आ रहें है, मसला बिल्कुल साफ़ ओ शफ़्फ़ाफ है अगर हम पाकिस्तान के ज़मीनी सुरते हाल का जायज़ा लें तो हमें ये मालूम होगा कि वहां - नासबियों के साथ जो तरावीह के लिए और कुछ नामनिहाद शिया  अख़बारी ग्रुप हुकूमतों को प्रेशर कर रहें है कि 21 रमज़ान में इमाम अली अलैहिस्सलाम की मजलिस को लॉकडाउन तोड़ कर बपा करना चाहतें है। याद रहें ये वही यूरोपी आगा ग्रुप के बदनिहाद लोग हैं जिनके यहां भारत से मिर्ज़ा यासूब अब्बास साहब और गज़नफ़र तुसी साहब पहुंचे होते है। उसी तरह कुछ फितनागर वहाबी ग्रुप कराची हुकूमत को प्रेशर करके तरावीह अदा करने की परमिशन ले चुके है। 

सिंध हुक़ूमत ने एक नोटिस जारी करके जिसका डिस्पैच नंबर ये है ( SO (jud - I) HD/8-1(04)/2020) 
कह दिया है कि तरावीह तो हो सकती है क्योंकि ये अहले सुन्नत के यहां जुमा की तरह फ़र्ज़ है लेकिन अहले शिया के यहां नहीं है इसलिए जुलूस ए इमाम अली अलैहिस्सलाम से एहतियात करें क्यूंकि ये मौक़ा सहीह नहीं है। ऐसी सूरत में पाकिस्तान की अख़बारी गैंग जिसके सरगना शौकत रज़ा शौकत, ज़मीर अख़्तर जैसे बद अकीदा गाली हैं इनके चेले वहां की मासूम अवाम में ये ज़हर घोल रहें है कि 21 रमज़ान को जुलूस होना वाजिब है। जैसा कि ज़मीर अख़्तर भी मजलिस को नमाज़ से अफ़ज़ल और वाजिब करार देता है और कहता कि कोरोना में भी जुलूस होने चाहिए। 

इसी बात कि तरदीद करते हुए आगा जवाद नक़वी साहब ने दोनों फितना गिरोहों का पर्दाफाश किया और बता दिया कि दोनों ग्रुप कि डिमांड वाजिब नहीं है। क्यूंकि सुन्नियों में भी तरावीह, जुमा की तरह वाजिब नहीं है और शियों में भी मजालिस वाजिब नहीं है और इन्हें आम दिनों में टाल दिया जाता है तो लॉकडाउन में क्यूं नहीं। ये कहकर आगा जवाद ने दिनों गिरोह के प्रोपगंडा करने वालों की तरदीद की है। 

याद रहें की ये दुश्मनी फक़त आगा जवाद तक ही नहीं महदूद है बल्कि बुग्ज़ के तार रहबर तक जातें हैं, दुश्मन रहबर को भी आज़ादारी का दुश्मन कहतें हैं क्यूंकि उन्होंने कमाज़नी पर अपना इज़हारे खयाल करतें हुए इसे ना करने की ताकीद कि है। 
.......
अब भारत के काम अक्ल लोगों से सवाल है कि क्या आप अख़बारी, एम आई 6 सपोर्टर्स में से है? क्या आपके नज़दीक भी अज़ादारी वाजिब है? उसुले दीन में से है? क्या आप भी लखनऊ से लेकर जहां भी बैठकर आलिम ए बाअमल को गालियां पोस्ट कर रहें है भारत में 21 रमज़ान को "वाजिब" अज़ादारी सड़कों पर, जुलूस की शक्ल में उठाएंगे? ये आने वाले दिनों में ख़ुद बा ख़ुद मालूम चल जाएगा। 

याद रहें, आगा जवाद नक़वी ने पाकिस्तान के ज़मीनी मुद्दे पर अपनी बात रखी थी ना की कुल्लन पूरी दुनिया और अज़ादारी के अज़ीम अकीदे के ख़िलाफ़, पहले बात का पसे मंज़र जानिए फ़िर फैसला कीजिए! 

क्या आप पाकिस्तानी के हालात से वाकिफ़ है? नहीं; वहां शियों के क्या हालात हैै और क्वेटा, चकवाल में हुई शिया क़त्ल गारत के पीछे जिन वहाबी और नुसैरी मलंगों का गैंग शामिल था आप उन्हें जानते है? क्या आप पाकिस्तान के 5000 मिसिंग शियों की ज़िम्मेदारी लेते है? क्या आप पाकिस्तान में टारगेट किलिंग में मारे गए उलेमा, मोमिनीन की ज़िम्मेदारी लेते हैं? जिनको लेनी थी वो पाकिस्तान से भागकर लंदन, ऑस्ट्रेलिया में बस चुके है और जो हक़परस्त जाबांज़ हैं उन्हीं के इनकी हिमायत में वतन नहीं छोड़ा है और मैदान में सबसे आगे है, ये आपके जनाबो की तरह नहीं है जिनके पांव मस्जिदों के खुतबों देने अलावा बाहर नहीं निकले। जिन्होंने सी ए ए जैसे कानून की हिमायत की..... (सब याद रखा जाएगा) 

क्या आप इन बातों को जानते है की पाकिस्तान में आकर नुसैरी काफिर एम आई 6 के ज़ाकिरीन, अहले सुन्नत और उनके मुक्कदस लोगों की तौहीन करके लंदन, ऑस्ट्रेलिया वापस चलें जातें रहे और वहाबी गैंग मसलन सिपाह साहब उसी की बिना पर वहां पर मासूम शियो का क़त्ल करती रही है जिन शोहदा की तादाद दस हज़ार से ऊपर है। 

ऐसे में क्या उस मुल्क में बुज़ुर्ग उलेमा की ज़िम्मेदारी नहीं है को वो अपनी मिल्लत को भटके हुओं की तरफ़ जाने से रोकें? 

आप भारत में बैठकर जानते ही क्या है? आपको इतना भी नहीं मालूम चलता को जिस बैंक में आपका पैसा है वो किस रात डूब जाने वाला है। 

*आगा जवाद के ख़िलाफ़ प्रोपगंडा क्यूं और कैसे?*

आगा जवाद के ख़िलाफ़ प्रोपगंडा की सबसे बड़ी वजह उनका इन्कलाबी फ़िक्र का होना है, उसी के साथ इन्होंने पाकिस्तान में इस्लाम के ख़िलाफ़ उठ रहे हज़ारों फितनो को तोड़कर इत्तेहाद की दावत दी है इन्होंने तमाम मसलक के उलेमा को एक स्टेज पर बैठा कर यज़ीदे पलीद को कुत्तानुमा नजिस करार दिया है इसके बाद पूरे पाकिस्तान में किसी की हिम्मत नहीं हुई है कि यज़ीद की हिमायत कर सके और....  एक बेहतरीन निज़ामे तालीम देने वाली यूनिवर्सिटी कायम करके दुनिया को बहुत बड़ा दर्स दिया है। इनकी इल्मी शख्सियत का लोहा दुश्मन भी मानते है और कई बार इनकी बातों से लाजवाब हो चुके है। आगा जवाद के दर्स की कुछ क्लिप्स जिनकी लिए मुतालेया करने की शर्त ज़रूरी है उसे कट करके वायरल किया जाता और लंदन में बैठा एम आई 6 का गैंग इनके खिलाफ़ आलमी फितना करता है। 

भारत में इसी गैंग के चश्म ओ चराग मिर्ज़ा यासूब अब्बास ने आगा जवाद की तौहीन का ठेका उठा रखा है और साथ ही साथ ये साहब रोहित सरदाना को सुन्नियों के ख़िलाफ़ दिए गए आजतक पर अपने बयान तक को लंदन के मरकज़ी एम आई 6 के इदारे के चैनलों पर शाया करवाते हुए भी नहीं चूकते। 

मिर्ज़ा यासूब के अलावा बड़े जनाब की सोशल मीडिया गैंग भी इस आलिम ए बाअमल की मां, बहन, बीवी को गंदी गालियां लिखने का ठेका उठाएं हुए है। हाल ही में मिर्ज़ा यासूब अब्बास के ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के जलसे में जौनपुर में मौलाना महफुज़ूल हसन ने भी आगा जवाद की *हरामी* और *शैतान* कहा था - जो किस हद तक जायज़ है? क्या एक सहिबे अमामा ख़ुद को आलिम कहने और लिखने वाले को ये ज़ेब देता है? बहरहाल, फितूर और बुग़ज़ क्या क्या करवा दे! 

यासूब के साथ साथ अब्बास इरशाद, असद यावर, महदी हसन वायेज़, सैफ अब्बास भी जिनका सालाना दौरा लंदन, अमेरिका के पाकिस्तानी मलांगी इदारों में लगता है आगा जवाद के ख़िलाफ़ वीडियो निकालकर यूरोप लंदन के फितनागर अख़बारी गैंग के फ़ेसबुक चैनलों पर अपलोड करवातें है। 

मौलाना सफी हैदर, शौकत भारती और इन जैसे लोग जिन्हें कुर्सी और लाल कुर्ते की फ़िक्र रहती है वो भी अपनी कम इल्मी में ही डायरेक्ट डॉक्यूमेंट्री बना डालते है और मौलाना सफी हैदर टेलीविज़न यहां तक देते है कि शियत में कोई भी किताब पूरी तरह सहीह नहीं है। 

अगर मान लिया जाए कि 
क्या पाकिस्तान में सिर्फ़ आगा जवाद ही दीन में दखल दे रहें है तो ये प्रोपगंडा भी एक बकवास है। पाकिस्तान में हकीकी तौर पर दुश्मने शियत अख़बारी गैंग है जो लंदन कि एम आई 6 शियत की बनाई जिहालतों मसलन अली अलैहिस्सलाम को अल्लाह की निस्बत देना वगैरह पाकिस्तान के घर घर में बिठा चुकीं। 

क्या कभी किसी ने मिर्ज़ा यासूब अब्बास से पूछा कि तुम्हे कौन सा इल्म है की तुम्हे लंदन में खिताब करने का विज़ा मिल जाता है? क्या किसी ने नय्यर जलालपुरी से पूछा कि ज़मीर अख़्तर जैसे बेदीन फितने से तुम्हारे क्या ताल्लुक है? क्या किसी लखनऊ में पाकिस्तान के फितनागर नूसैरी ज़ाकिर हाफ़िज़ तसद्दुक और उसके बेटे मुर्तज़ा की मजलिसों का बॉयकॉट किया? क्या लंदन से आया मुर्तज़ा नुसैरी नहीं है? 

क्या किसी ने यासूब अब्बास के बुलाए हुए नकली आयतुल्लाह हसन रज़ा जिसका असली नाम गुड्डू गदीरी है जो ईरान से भागकर लंदन में बस गया है और वहां से मुस्तकिल फितना कर रहा दीन के लिए खतरा नहीं कहा? 

क्या किसी को सादिक शिराज़ी का नुमाइंदा सैफ़ अब्बास लखनवी दीन का दुश्मन नहीं लगा? लेकिन क्यूं - 

एक शिया आलिमे दीन जिसने अपनी पूरी जिंदगी खिदमते दीन में गुज़ार दी, हज़ारों यतीमो की मसीहाई की - *जल्लाद* दिखता है? 

आख़िर क्युं एक नक़वी सय्यद *नकली* दिखता है? 

आख़िर क्यों एक गैरत मंद आलिम *हरामी* दिखता है? 

क्या एक शिया आलिम ए बा अमल अपने पाकिस्तानी होने की बिना पर हर भारतीयों के *हरामी* हो जाता है? ये कहां का इंसाफ है? ये कौन सी शियत है? ये कौन का अकीदा है? 

क्यूंकि वो हक़ बयान करता है इसलिए? क़ुरान की तफसीर करता है? इसलिए ? 

अपने ज़हनों ने बैठे बनू उम्मया को निकालो, .....

अक्ल से काम लो, वरना बरोज़े महशर रसूल अल्लाह को जवाब देना होगा। 

अब भारत में बैठे सैकड़ों, बद अकीदा, अख़बारी सिफ़त फेसबुकिया जाहिलों से सवाल है कि - जिन बातों को, जिन गालियों को ये लिख रहें क्या इसकी दीनी दलील ला सकतें है? क्या उलेमा को मुल्लाह, लाहौरी, चोर, जल्लाद कहना - शरीयत से साबित है? 

जवाब दीजिए।

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