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इमाम रेज़ा (अ) की ग़ालियों से बेज़ारी

*इमाम रेज़ा (अ) की  ग़ालियों से बेज़ारी* पैग़म्बर नौगांवी आइम्मा ए अहलेबैत (अ) ने अपने अपने ज़माने के हालात के मुताबिक़ दीने इस्लाम की हिफ़ाज़त फ़रमाई है। इमाम अली (अ) ने ख़ामोश तबलीग़ के ज़रीए।  इमाम हसन (अ) ने सुलह के ज़रीए।  इमाम हुसैन (अ) ने मक़तल में क़र्बानी के ज़रीए। इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) ने दुआओं के ज़रीए। इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) ने रसूल अल्लाह (स) की हदीसों के प्रचार के ज़रीए। इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने शागिरदों की तालीम व तरबीयत के ज़रीए। इमाम मूसा काज़िम (अ) ने विलायत और वली के प्रचार के ज़रीए। और इमाम अली रेज़ा (अ) ने इल्मी मुबाहेसों और मुनाज़रों (Debate) के ज़रीए दीनी अक़दार (Values) व उसूल को बचाया है । इमाम अली रेज़ा (अ) के ज़माने में ग़ाली और बेदीन लोग सब से बड़ी मुसीबत बने हुए थे। इमाम हसन (अ) और इमाम हुसैन (अ) व दूसरे आइम्मा के ज़माने में इस्लाम के लिए जितने बनी उमय्या ख़तरनाक थे उन से ज़्यादा इमाम रेज़ा (अ) के ज़माने में ग़ाली नुक़सान पँहुचाने वाले थे। ग़ुलू का मतलब किसी की हद से ज़्यादा तारीफ़ बयान करना या एतक़ाद रखना होता है। हर हद से ज़्यादा को ग़ुलू नहीं कहते बल्कि वह हद से ज़्यादा जो ख़ुद हद को नुक़सान पँह